" मजदूरों व दलितों के लिए लड़ना हो, वह भी बिहार के कोयलांचल में, तो मृत्यु
का साक्षात्कार एक नियमित घटना बन जाती है। रमणिका गुप्ता के व्यक्तित्व
में दलितों के लिए छेड़े गए संघर्ष तथा उनके लिए लिखे गए शब्दों का विरल
संगम उपस्थित होता है। लेखिका ने तीस वर्षों से अधिक तक के विस्तृत काल
में निजी पारिवारिक जीवन को ताक पर रख कर बिहार के कोयलांचल में
भूमि-संघर्ष, मजदूर-संघर्ष चलाए। ऐसे जोखिम भले माहौल में जब मृत्यु का
सामना हो तो कौन-सी शक्तियां कर्मयोगियों को जीवन प्रदान करती हैं, इसी
प्रश्न का उत्तर इस आत्मकथात्मक काव्य-कृति में है। लेखिका के सार्वजनिक
जीवन के अनुभवों से संयुक्त यह काव्य-गाथा आत्मकथात्मक होने के साथ-साथ
व्यापक सामाजिक सरोकारों को भी अपने में समेटे है।
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